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मुझे समझ में नहीं आता आदमी करना क्या चाहता है ? कितनी भूख है मन में ? भूख के प्रकार तक समझ से बाहर हैं ! कोई सत्ता पाने के लिए कितने भी नीचे गिरने को तैयार है तो कोई पैसा पाने के लिए छुद्रता अपनाने को आतुर है ,कोई स्त्री तन के लिए, तो कोई सम्मान के लिए , बहाने भी अजीब हैं कोई देश सेवा बताता है तो कोई समाज सेवा ,कोई होश में नहीं होने का बहाना बनाता है तो कोई बुडापे की मजबूरी , कोई जवानी को निरंकुश कहता है तो कोई अपनी गलती पर भी दुसरे को ताली का दूसरा हाथ बताता है ! मानसिक रोग बता कर पाप को गलती बना देता है तो कोई नाबालिग होने का भरपूर फायदा उठाता है ! तो कोई ताकत को अपना हक़ बताता है !
मेरे एक दूर के चाचा जी हैं ,ठीक ठाक स्थिति में हैं बस शराब का सेवन थोडा ज्यादा करते हैं और चदती भी खूब है अक्सर रोड पर गिरे हुए मिलते हैं ,एक दिन शाम को मुझसे आमना सामना हो गया घर से नाराज हो कर आये थे ,शायद चाची जी ने बाहर हो रही बातों यानि की चाचा जी के शराब सेवन को ले कर चर्चा के बारे में बात की होगी और शायद झगड़ा भी हुआ हो ,मैं भी किसी के साथ बात चीत में व्यस्त था पर उनको लगा सब मेरे बारे में ही बात कर रहे हैं उनकी नाराजगी जायज थी , मैं कुछ अपनी सफाई मैं कुछ कहता उससे पहले ही उन्होंने उपदेश देना शुरू कर दिया और बोले ”पाप से घ्रणा करो पापी से नहीं” मैं अवाक्य था ,उत्तर मेरे बस मैं नहीं था और मैं शांत ही रहा ! शान्ति सिर्फ दिखावा भर थी मन बहुत चिंतित हुआ और सोचता रहा कि हमारे महापुरुष सही थे या चाचा जी ? बात एक ही थी पर मेरी समझ के बाहर क्यों हो रही थी और बात भी सही है घ्रणा का पात्र तो शराब है चाचा जी से क्यों नाराज होना या घ्रणा करना ?
भ्रष्टाचार हो या बलात्कार , ह्त्या हो या आत्महत्या ,चोरी हो या सीना जोरी ये सब पाप हैं और पापी हम सब ! पापी को क्यों सजा देना ? पाप की बलि चड़ाई जानी चाहिए , कब तक पाप के आड़ में पापी को सजा मिलती रहेगी ? जब से इस ज्ञान को मैंने प्राप्त किया मोक्ष जैसा मिल गया है, अब किसी में कमी दिखाई ही नहीं देती और कबीर ने भी कहा है बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलया कोए …. जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा ना कोए !
किस इंतज़ार में हम सब सपना देखते रहते हैं भ्रष्टाचार मुक्त भारत ,खुशहाल जनता ,प्रदुषण मुक्त वातावरण , अनुशाषित समाज और पता नहीं क्या-क्या बात करते रहते हैं ? लेकिन कोई हल नहीं है जब तक पाप से घ्रणा करोगे पापी से नहीं ! शराब के ठेके खुलवा कर ये इंतज़ार करना कि लोग पाप से घ्रणा करना जानते हैं कहाँ तक सही है ? भ्रष्टाचार करने के बाद कब तक जनता फिर उन्हीं चोरों को संसद तक पहुचाती रहेगी और कहेगी हमने तो पापी को माफ़ किया है ?
हमें पापियों से घ्रणा करना सीखना होगा पाप तो सभी जगह और सभी के मन में उपलब्ध हैं विकारों कि कोई सीमा नहीं है, लेकिन उचित समाधान यही है कि पापी से घ्रणा कि जाए और माफ़ नहीं किया जाए !
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